धान, भारत समेत कई एशियाई देशों की मुख्य खाद्य फसल है। दुनिया के अन्य क्षेत्रों में भी मक्का के बाद धान की खेती की जाती है। करोड़ों किसान धान की खेती करते हैं, खासकर खरीफ सीजन में भारत के विभिन्न हिस्सों में धान की खेती की जाती है।
धान की खेती की शुरुआत नर्सरी से होती है, इसलिए बीजों का उचित चयन करना महत्वपूर्ण है। कई बार किसान महंगे बीजों और खादों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन सही प्रदर्शन नहीं प्राप्त होता है। इसलिए बुआई से पहले उचित बीज चयन और खेत की देखभाल करना आवश्यक है। बीज की मूल्यवानता जरुरी नहीं है, बल्कि यह मौसम और भूमि की गुणवत्ता के आधार पर चयन किया जाना चाहिए।
भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिक, डॉ. पी. रघुवीर राव बताते हैं कि देश के विभिन्न राज्यों में धान की खेती की जाती है, और विभिन्न किस्मों के धान की खेती के लिए स्थानीय मौसम के हिसाब से उपयुक्त बीजों का चयन करना चाहिए।
देश के आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, असम, केरल, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल आदि राज्य धान की खेती का 80 प्रतिशत हिस्सा ब्रदर्द तथा खाते हैं। भारत में सबसे अधिक धान की खेती पश्चिम बंगाल में की जाती है, इसके बाद उत्तरप्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब, बिहार और छत्तीसगढ़ में धान की खेती प्रमुखता से की जाती है। देश की करीब 65 प्रतिशत आबादी धान पर निर्भर है।
धान की खेती के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन पानी की कमी के कारण आजकल धान की खेती कठिन हो रही है। हरियाणा सरकार ने धान की खेती छोड़ने वाले किसानों के लिए अन्य फसलों की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए योजना बनाई है। इसका मुख्य कारण भू-जल स्तर की कमी और मॉनसून की अनियमितता है। ऐसे में, पानी का संवेदनशील उपयोग करने की आवश्यकता है ताकि अन्य महत्वपूर्ण फसलों की खेती की जा सके।
इस लेख में हमने धान की खेती के सही समय और विधियों के बारे में जानकारी दी है, जो भारत में अधिक प्रयोग की जाती है।
धान की टॉप 10 किस्में:

भारत में धान की कई उन्नत किस्में हैं, जिनका चयन भूमि, पानी, और जलवायु के आधार पर किया जा सकता है।
- पूसा – 1460: बासमती धान की उन्नत किस्म, जिसके दाने लंबे और स्वादिष्ट होते हैं।
- पूसा सुगंध 3: सुगंधित बासमती धान की एक अच्छी किस्म, कीट और रोगों के प्रकोप में कम होता है।
- डब्लू.जी.एल. – 32100: मध्यम अवधि में पकने वाली धान की अच्छी किस्म, दाने छोटे होते हैं।
- आईआर -36: सूखाबर्दाश्त करने वाली किस्म, कम बारिश में बोई जाती है, औसतन पैदावार 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
- आई.आर. – 64: मध्यम अवधि में पकने वाली किस्म, दाने लंबे और पतले होते हैं।
- अनामिका: उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, और असम में की जाने वाली धान की प्रमुख किस्म, औसतन पैदावार 50 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
- एनडीआरआर धान 310: अच्छी पैदावार देने वाली किस्म, दाने सफेद और चमकदार होते हैं।
- एनडीआर 359: जल्दी पकने वाली किस्म, औसतन पैदावार 50 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
- सीएसआर-10: बोई जाने वाली किस्म, औसतन पैदावार 50 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
- जया धान: सबसे अच्छी धान किस्म, बीएबी, एसबी, आरटीबी, और ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी होती है, औसतन पैदावार 50 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
धान की खेती कैसे करें (Dhaan ki kheti)
धान की खेती: सही समय और तकनीक
धान की खेती के लिए सही समय का चयन महत्वपूर्ण होता है। धान की सीधी बुआई का काम मानसून के प्रारंभ होने से पहले, अर्थात जून के पहले सप्ताह तक पूरा कर लेना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होता है कि मानसून के प्रारंभ होने पर धान खेत में अच्छी तरह से अंकुरित हो सकेगा, क्योंकि मानसून प्रारंभ होने पर अधिक जल-जमाव होने के कारण धान का सही रूप से जमाव नहीं हो पाता।
धान की रोपाई का सही समय जून के तीसरे सप्ताह से लेकर जुलाई के तीसरे सप्ताह तक होता है। इससे पहले, मई में पौधे तैयार करने का काम शुरू किया जा सकता है। मई में ही धान की नर्सरी तैयार कर लेनी चाहिए और जून में रोपाई का काम शुरू किया जाना चाहिए। सही समय पर धान की नर्सरी तैयार कर लेने से रोपाई का काम आसान हो जाता है। धान की किस्म के आधार पर नर्सरी तैयार करने का समय अलग-अलग होता है:
- हाइब्रिड किस्मों के लिए, मई के दूसरे सप्ताह से पूरे जून के महीने तक नर्सरी तैयार की जा सकती है।
- मध्यम अवधि की हाइब्रिड किस्मों के लिए, नर्सरी को मई के दूसरे सप्ताह में लगाना चाहिए।
- बासमती किस्म के लिए, नर्सरी को जून के पहले सप्ताह में लगाया जा सकता है।
धान की खेती के इन उपयुक्त समय और तकनीकों का पालन करके किसान अधिक उत्पादक और सफल हो सकते हैं।
धान की खेती के लिए जलवायु:
- मौसम: धान की खेती के लिए मौसम का महत्वपूर्ण भूमिका होता है।
- तापमान: धान के लिए उपयुक्त तापमान 16-30° सेल्सियस दर्ज किया गया है।
- वर्षा: यह फसल 100-200 सेमी की वर्षा के लिए उपयुक्त होती है।
- बोने का तापमान: बोने करने के लिए उपयुक्त तापमान 20-30°C होता है।
- कटाई का तापमान: धान की कटाई के लिए सही तापमान 16-27°C होता है।
धान की खेती के लिए मिट्टी:
- धान की उन्नत खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी का चयन भी महत्वपूर्ण है।
- मिट्टी की अलग-अलग किस्मों में धान की खेती की जा सकती है, जैसे कि जिनमें पानी सोखने की क्षमता कम होती है और जिनकी पी एच 5.0 से 9.5 के बीच होती है।
- धान की पैदावार के लिए गारी मिट्टी से लेकर गारी मिट्टी तक, और चिकनी मिट्टी जिसमें पानी को सोखने की क्षमता कम होती है, इस फसल के लिए उपयुक्त होती है।
जमीन की तैयारी:
- बीज की बुवाई: गेहूं की कटाई के बाद, खेत में हरी खाद के रूप में मई के पहले सप्ताह में बीज की बुवाई करें। बीज दर 20 किलोग्राम प्रति एकड़ के साथ, ढैंचा, सन, या लोबीया बीज का उपयोग करें।
- जोत देना: फसल 6 से 8 सप्ताह की हो जाने पर, एक दिन में जोत देना चाहिए। इससे प्रति एकड़ 25 किलो नाइट्रोजन खाद की बचत हो सकती है।
- भूमि की समता: लेज़र लेवलर का प्रयोग करके भूमि को समतल करें।
- पानी की नियोजन: खेत में पानी खड़ा करें, ताकि भूमि के अंदर ऊंचे नीचे स्थानों की पहचान हो सके, और पानी की बर्बादी को कम किया जा सके।
- मेड़बन्दी और जुताइ: गर्मी की जुताई के बाद, 2-3 जुताइयां करके खेत की तैयारी करें, मजबूत मेड़बन्दी करें, और वर्षा का पानी संचित करने के लिए सुनिश्चित बना दें।
- फास्फोरस का प्रयोग: अगर हरी खाद के रूप में ढैंचा/सनई का उपयोग हो रहा है, तो फास्फोरस का प्रयोग भी करें।
- सिंचाई की तैयारी: धान की बुवाई/रोपाई के एक सप्ताह पहले, खेत में सिंचाई करें, जिससे खरपतवार उग आवे, और फिर बुवाई/रोपाई के समय पानी खर्च कम हो।
बीजों का चयन और शोधन:
आज की खेती में सबसे महत्वपूर्ण चुनौती बीजों का चयन और उनका शोधन करना है। किसानों को इस तथ्य का जागरूक होना चाहिए कि बीजों के शोधन से धान की फसल को विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाया जा सकता है। धान के 1 हेक्टेयर के खेत की रोपाई के लिए बीज शोधन की प्रक्रिया में केवल 25-30 खर्च होते हैं।
धान की रोपाई विधियाँ:
- पौधों की तैयारी:
- पौधों की रोपाई से पहले, नर्सरी में पौधों को एक दिन पहले सिंचाई करें, ताकि पौधों को आसानी से निकाला जा सके।
- पौधों को नर्सरी से निकालते समय, जड़ों को पानी से साफ करें।
- कार्बेन्डाजिम 75 प्रतिशत डब्ल्यू. पी की मात्रा के साथ एक लीटर पानी में घोल बनाएं और इसमें पौधों की जड़ों को 20 मिनट तक भिगोकर रखें।
- अब उपचारित पौधों को खेत में रोपाई करें।
- रोपाई विधि:
- धान के खेत को तैयार करें और लेही विधि के साथ बीज बोएं।
- नर्सरी में बीजों की नर्सरी तैयार करें और 25 दिनों के पौधे उगाएं।
- पूरी जड़ और बीज सहित पौधे निकालें और खेत में 25 सेंटीमीटर की दूरी पर बोएं।
- दो से तीन पौधों को एक साथ रोपें।
उर्वरकों का संतुलित प्रयोग और विधि:
आज की खेती में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किस प्रकार से हम बीजों का चयन करते हैं और उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। किसानों को बीजों के उर्वरकों के प्रति जागरूक होना चाहिए, क्योंकि इससे धान की फसल को विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाया जा सकता है।
बीज शोधन:
- धान की 1 हेक्टेयर की रोपाई के लिए बीज शोधन की प्रक्रिया में सिर्फ 25-30 करोड़ खर्च करने होते हैं।
सिंचित दशा में रोपाई (अधिक उपजदानी प्रजातियां):
- शीघ्र पकने वाली:
- नत्रजन: 120 किलो/हेक्टर
- फास्फोरस: 60 किलो/हेक्टर
- पोटाश: 60 किलो/हेक्टर
- मध्यम देर से पकने वाली:
- नत्रजन: 150 किलो/हेक्टर
- फास्फोरस: 60 किलो/हेक्टर
- पोटाश: 60 किलो/हेक्टर
- सुगन्धित धान (बौनी):
- नत्रजन: 120 किलो/हेक्टर
- फास्फोरस: 60 किलो/हेक्टर
- पोटाश: 60 किलो/हेक्टर
प्रयोग विधि: नत्रजन की एक चौथाई भाग तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूर्ण मात्रा कूंड में बीज के नीचे डालें, शेष नत्रजन का दो चौथाई भाग कल्ले फूटते समय तथा शेष एक चौथाई भाग बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर प्रयोग करें।
देशी प्रजातियां (उर्वरक की मात्रा: किलो/हेक्टर):
- शीघ्र पकने वाली:
- नत्रजन: 60
- फास्फोरस: 30
- पोटाश: 30
- मध्यम देर से पकने वाली:
- नत्रजन: 60
- फास्फोरस: 30
- पोटाश: 30
- सुगन्धित धान:
- नत्रजन: 60
- फास्फोरस: 30
- पोटाश: 30
प्रयोग विधि: रोपाई के सप्ताह बाद एक तिहाई नत्रजन तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के पूर्व तथा नत्रजन की शेष मात्रा को बराबर-बराबर दो बार में कल्ले फूटते समय तथा बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर प्रयोग करें। दाना बनने के बाद उर्वरक का प्रयोग न करें।
सीधी बुवाई (उपज देने वाली प्रजातियां): नत्रजन: 100-120, फास्फोरस: 50-60, पोटाश: 50-60
प्रयोग विधि: फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व तथा नत्रजन की एक तिहाई मात्रा रोपाई के 7 दिनों के बाद, एक तिहाई मात्रा कल्ले फूटते समय तथा एक तिहाई मात्रा बाली बनने की अवस्था पर टापड्रेसिंग द्वारा प्रयोग करें।
देशी प्रजातियां (उर्वरक की मात्रा: किलो/हेक्टर): नत्रजन: 60, फास्फोरस: 30, पोटाश: 30
प्रयोग विधि: तदैव वर्षा आधारित दशा में, उर्वरक की मात्रा-किलो/हेक्टर।
नोट: लगातार धान-गेहूँ वाले क्षेत्रों में गेहूँ धान की फसल के बीच हरी खाद का प्रयोग करें अथवा धान की फसल में 10-12 टन/हेक्टर गोबर की खाद का प्रयोग करें।
सिंचाई:
- पनीरी और पानी का इस्तेमाल:
- पनीरी लगाने के बाद, खेत में दो सप्ताह तक पानी की खड़ाई बनी रहने दें।
- जब सभी पानी सूख जाए, तो दो दिन बाद फिर से पानी दें।
- खड़े पानी की गहराई 10 सेंटीमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- सिंचाई की विधि:
- फसल की पूरी उम्र के दौरान, बूटी और नदीनों को निकालने से पहले, खेत से सारा पानी निकाल दें।
- इसके बाद, फिर से खेत को सिंचाई करें।
- पूरी तरह से पकने से 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें, ताकि फसल को आसानी से काटा जा सके।
धान के रोगों का विवरण:
- ब्लास्ट (फुफ्फुस रोग) – इजुमिल इजुमोनास 3 मिलीलीटर/लीटर से बीज का उपचार करें।
- ब्राउन स्पॉट (भूरे धान का रोग) – इजुमिल और इजुमोनास 3 मिलीलीटर/लीटर का उपयोग फुंगल रोग के खिलाफ करें।
- बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट (बैक्टीरियल पत्तियों का रोग) – इजुमिल और इजुमोनास 3 मिलीलीटर/लीटर का उपयोग फुंगल रोग के खिलाफ करें।
- राइस टंगरो (राइस टंगरो वायरस का रोग) – इसके लिए कोई उपाय नहीं है, पौधों को बचाने के लिए डेट नकली पौधों का प्रयोग करें।
- शीथ रोट (पत्तियों का रोग) -3 मिलीलीटर/लीटर इजुमिल और इजुमोनास से फुंगल रोग का उपचार करें।
- शीथ ब्लाइट (पत्तियों का रोग) – 3 मिलीलीटर/लीटर इजुमिल और इजुमोनास से फुंगल रोग का उपचार करें।
- फॉल्स स्मट (गली बगीचों का रोग) – 3 मिलीलीटर/लीटर इजुमिल और इजुमोनास से फुंगल रोग का उपचार करें।
- बैक्टीरियल लीफ स्ट्रीक (बैक्टीरियल पत्तियों का रोग) – इजुमिल और इजुमोनास 3 मिलीलीटर/लीटर का उपयोग फुंगल रोग के खिलाफ करें।
- बकाने (धान का रोग) – 3 मिलीलीटर/लीटर इजुमिल और इजुमोनास से फुंगल रोग का उपचार करें।
- राइस येलो ड्वार्फ (राइस वायरस का रोग) – इसके लिए कोई उपाय नहीं है, स्वस्थ पौधों का प्रयोग करें।
- राइस ग्रासी स्टंट (राइस वायरस का रोग) – इसके लिए कोई उपाय नहीं है, स्वस्थ पौधों का प्रयोग करें।
- ग्रेन डिसकलरेशन (अन्य रोग) – 3 मिलीलीटर/लीटर इजुमिल और इजुमोनास से फुंगल रोग का उपचार करें।
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धान की कटाई
- धान के दानों में 20 से 25% नमी होने पर धान की कटाई की जा सकती है।
- धान के दाने 80 से 85% बाली होने पर धान की फसल को कटाने के लिए तैयार माना जा सकता है।
- कटाई कई जगहों पर हाथ से की जाती है।
- हाथ से कटाई करने में ज्यादा समय और मेहनत चाहिए, जिससे कटाई की लागत भी बढ़ सकती है।
- कटाई के अलावा, धान की कटाई कम्बाइनर मशीन से भी की जा सकती है।
- कम्बाइनर मशीनें विभिन्न प्रकार की होती हैं, कुछ में ट्रैक्टर के साथ चलने वाली होती हैं और कुछ में इंजन के साथ स्वचालित होती हैं।
- कम्बाइनर से कटाई करने पर समय कम लगता है और कटाई की लागत भी कम होती है।

