गाजर एक पौधा है जो हर दो साल में फसल देता है. यह एक पौधा है जो “अंबेलिफर कुटुंब” से संबंधित है, और इसका पूरा जीवन चक्र एक या दो साल में पूरा होता है. गाजर विटामिन ए का बड़ा स्रोत होता है और यह भारत की मुख्य सब्जी की फसल में से एक है. भारत में हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य गाजर की मुख्य खेती क्षेत्र हैं.
जब गाजर की खेती की बात आती है, तो पूरे पौधे के अंदर होने वाली मोटी, लंबी, लाल या नारंगी जड़ों का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. इसमें बहुत सारे गुण होते हैं, जैसे कि अल्फा और बीटा कैरोटीन, और यह विटामिन का और विटामिन बी 6 का एक अच्छा स्रोत होता है.
गाजर को कच्चा या पका कर खाया जा सकता है. यह सब्जियों, सलाद, अचार, और हलवा आदि के रूप में बनाया जाता है. इसमें विटामिन और मिनरल की अच्छी मात्रा होती है, और इसके रस को पीने से आपकी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है.
गाजर नियमित रूप से खाने से आपकी जठर में होने वाले अल्सर और पाचन संबंधित समस्याओं को दूर कर सकते हैं. इसके अलावा, यह आपकी आंखों की रौशनी को भी बढ़ावा देता है.
गाजर के अनेक गुणों के कारण लोग इसे अपने आहार में शामिल करते हैं. आइए, हम आज जानते हैं कि किस प्रकार से हमारे किसान भाइयों को नवंबर के महीने में गाजर की किस खस्म का चयन करना चाहिए, ताकि उन्हें अच्छा मुनाफा मिल सके।
गाजर की किस्में
एशियाई किस्में:
- पूसा रुधिरा: सितंबर-अक्टूबर में बुआई के लिए उत्तम, प्रति हेक्टेयर 300 क्विंटल गाजर प्राप्त होता है।
- पूसा मेघाली: नारंगी गूदा वाली, प्रति हेक्टेयर 250 क्विंटल गाजर प्राप्त होती है, कैरोटीन की अधिक मात्रा होती है।
- पूसा केशर: देशी किस्म, प्रति हेक्टेयर 250 क्विंटल फसल प्राप्त होती है।
- पूसा वसुधा: मीठी स्वाद, प्रति हेक्टेयर 400 क्विंटल गाजर की पैदावार होती है।
- पूसा नयनज्योति: पहाड़ी क्षेत्र में अप्रैल-अगस्त और मैदानी क्षेत्र में नवंबर-दिसंबर में बुआई, प्रति हेक्टेयर 350-400 क्विंटल गाजर प्राप्त होता है।
- पूसा आसिता: मैदानी क्षेत्रों में प्रशंसा पाने वाली किस्म, काला रंग, 90-100 दिन में तैयार होती है।
यूरोपियन किस्में:
- चैंटनी: गहरे लाल नारंगी रंग, प्रति हेक्टेयर 150 क्विंटल गजर प्राप्त होती है।
- नैंटिस: मुलायम, मीठी और खाने में स्वादिष्ट, प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल गाजर प्राप्त होती है।
उपरोक्त विवरण से आपको गाजर की प्रमुख किस्मों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली है, जैसे कि उनकी बुआई के समय, उपज की मात्रा, और रंग।
गाजर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
उपयुक्त जलवायु:
गाजर की खेती के लिए अधिक उचित तापमान की आवश्यकता नहीं होती है। इसे ठंड के मौसम में ही बोया जाता है, जिसके लिए तापमान केवल 25 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए। इस तापमान पर गाजर का रंग और आकार अच्छा होता है। गाजर की बुआई के समय, जो कि 10 डिग्री सेल्सियस तक सही माना जाता है, यह तापमान बहुत महत्वपूर्ण है। इस तापमान की जरूरत पौधों के उनकी जड़ तक होती है। शुरुआत में, जड़ें लम्बी होती हैं, तो पैदावार के साथ ही फसल की अच्छी मूल्य मिलती है। क्योंकि जब जड़ें लम्बी होती हैं, तो गाजर का आकार भी अच्छा होता है।
मिट्टी:
गाजर की जड़ों के सुखद विकास के लिए गहरी, नर्म, और चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है। बहुत ज्यादा भारी और बहुत नर्म मिट्टी गाजर की फसल के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है। अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी की pH मान 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए, लेकिन 6.5 का pH मान फसल के लिए और भी लाभकारी होता है। इस pH मान के अंतर्गत मिट्टी काढ़ी नहीं होनी चाहिए और वायुमिश्रण को भी यहाँ तक कि मिट्टी में पूरी तरह से आसानी से पहुंच सके।
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भूमि की तैयारी
अच्छी गाजर की उपज के लिए, आपकी भूमि की पीएच स्तर का ख्याल रखना बहुत महत्वपूर्ण है। आपकी भूमि का पीएच स्तर लगभग 6.5 होना चाहिए। इसके अलावा, भूमि में पानी का निकास अच्छा होना भी जरूरी है।
जब आप गाजर की खेत को तैयार कर रहे हैं, तो सुनिश्चित करें कि आप पूरे खेत को समतल करते है
बीज
बीज की मात्रा: बिजाई के लिए 1 एकड़ में 4-5 किलो बीज पर्याप्त होते हैं. 1 हेक्टेयर में गाजर की खेती के लिए 10 से 12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है.
बिजाई
गाजर के बीजों की बुवाई बीज के रूप में की जाती है।
बिजाई का समय
- पहली एशियन किस्म: इसकी बुवाई अगस्त से सितंबर महीने में करनी चाहिए.
- दूसरी युरोपियन किस्म: इसकी बुवाई अक्टूबर से नवंबर महीने में करनी चाहिए.
फासला:
- एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 6 से 8 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है।
बीज की गहराई:
- बीजों को खेत में छिड़काने से पहले, उन्हें उपचारित कर लिया जाता है।
- खेत में बीजों को छिड़कने के पश्चात्, खेत की हलकी जुटै दी जाती है, जिससे बीज भूमि में कुछ गहराई में चला जाता है।
बिजाई का ढंग:
- बीज को खेत में छिड़कने के पश्चात्, हल के माध्यम से क्यारियों को तैयार कर लिया जाता है।
- फसल को उचित समय पर पानी देना महत्वपूर्ण है, ताकि गाजर पूरी तरह से विकसित हो सके।
खरपतवार नियंत्रण
गाजर की फसल में खरपतवार से बचाव बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए, खेत में गाजर की बुआई के समय ही खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए खादियों का उपयोग किया जाता है। इसके बाद भी, अगर खेत में खरपतवार का प्रकट होता है, तो उन्हें हाथ से हटा देना चाहिए। इसके दौरान, अगर पौधों पर जड़ें दिखाई देती हैं, तो उनके चारों ओर मिट्टी को ढंक देना चाहिए।
खाद खादों की मात्रा (प्रति किलोग्राम प्रति एकड़)
- UREA: 55 किलोग्राम
- SSP (सिंगल सुपर फॉस्फेट): 75 किलोग्राम
- MURIATE OF POTASH: 50 किलोग्राम
- ZINC: # (जिंक की मात्रा निर्दिष्ट नहीं है)
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सिंचाई
गाजर की फसल की देखभाल कैसे करें:
- बुवाई के बाद पहला पानी: गाजर की फसल को बुवाई के तुरंत बाद पहला पानी देना चाहिए।
- शुरुआती सप्ताह में पानी: शुरुआती सप्ताह में गाजर को हफ्ते में दो बार पानी दें।
- बीज निकलने पर पानी: जब गाजर के बीज जमीन से बाहर निकल आते हैं, तब उसे हफ्ते में एक बार पानी दें।
- पौधों की जड़ें: जब तक पौधों की जड़ें नहीं बन जाती, तब तक उसे हफ्ते में एक बार ही पानी दें।
- गर्मी के मौसम में: अगर खेत में ज्यादा गर्मी हो, तो खेत में नमी के अनुसार पानी देते रहें।
- पौधों की लम्बाई: जब पौधे लगभग एक महीने बाद लम्बे होने लगते हैं, तो पानी की मात्रा कम कर दें।
- जड़ों की बढ़ोतरी: जड़ों की बढ़ोतरी के साथ, पानी की मात्रा बढ़ा दें।
- पौधों की देखभाल: इस दौरान, पौधों को हर 3 दिन में पानी दें। इससे पौधों की जड़ें मोटी होती हैं और ज्यादा पानी देने से गाजर में मिठास बढ़ती है।
- सिंचाई की आवश्यकता: गाजर को 5 से 6 बार सिंचाई करने की आवश्यकता होती है।
- नमी की संज्ञा: अगर बीज बोते समय खेत में कम नमी हो, तो पहली सिंचाई को तुरंत बोना जाना चाहिए।
- पानी की मात्रा: ध्यान दें कि पानी की डोलियों को ऊपर नहीं जाने दें, बल्कि 3/4 भाग तक ही बचा रहें। बाद की सिंचाईयां मौसम और भूमि की नमी के अनुसार 15 से 20 दिन के अंतराल पर करें।
गाजर की खेती में लगने वाले रोग एवं नियंत्रण
नाम | जानकारी | दवा | दवा की मात्रा |
---|---|---|---|
छाछ्या रोग | पौधों पर सफेद चूर्ण या पाउडर की जमावट | Izumil And Izumonas | 3ml – Izumil 5ml – Izumonas |
रोकथाम के उपाय | 0.2% गंधक का छिड़काव करें | Izumil And Izumonas | 3ml – Izumil 5ml – Izumonas |
सर्काेस्पोरा पत्ता ब्लाइट | पत्तियों और फूलों पर दाग | Izumil And Izumonas | 3ml – Izumil 5ml – Izumonas |
आर्द्रगलन रोग | बीज के अंकुरित होने पर पौधे संक्रमित हो जाते हैं | Izumil And Izumonas | 3ml – Izumil 5ml – Izumonas |
जीवाणु मृदुगलन | जड़ों पर दरारें पडऩा | Izumil And Izumonas | 3ml – Izumil 5ml – Izumonas |
स्क्लेरोटीनिया विगलन | पत्तों, तनों और डंठलों पर सूखे दाग | Izumil And Izumonas | 3ml – Izumil 5ml – Izumonas |
जड़ों में दरारें पडऩा | अधिक सिंचाई से जड़ों में दरारें पडऩा | Don’t Add Extra Water | No Need of Medicine |
जंग मक्खी | शिशु पौधों की जड़ों में सुरंग बनाकर रहते हैं | Izumi Guard | 5ml/ Litre Water |
सूत्रकृमि | सूक्ष्म जीव, पतले धागे की तरह | Izumi Guard | 5ml/ Litre Water |
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