भारत में गेहूँ की खेती एक महत्वपूर्ण फसल की कई बातें सिखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह फसल भारतीय कृषि क्षेत्र का मुख्य हिस्सा है और इसकी कटाई से लाखों लोग अपने जीवन का अधिकतम हिस्सा प्राप्त करते हैं।
गेहूँ का महत्व: गेहूँ को भारत में ‘आन्न’ का राजा माना जाता है, क्योंकि यह हमारी रोज़मर्रा की आवश्यकताओं के लिए मुख्यतः रोटी के रूप में उपयोग किया जाता है। इसमें प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है, जो हम अपने जीवन के लिए आवश्यक होता है। गेहूँ की खेती के बिना, हमारे जीवन की सामान्य रोज़मर्रा की जरूरतें अधूरी रहतीं। भारत के कुछ प्रमुख राज्य जैसे कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश गेहूँ की मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं, जो इस फसल की महत्वपूर्णता को और बढ़ाते हैं।
गेहूं की उन्नत एवं विकसित किस्में (Improved and Developed Varieties of Wheat)
भारतीय कृषि अनुसंधान और विश्वविद्यालयों ने विभिन्न क्षेत्रों के वातावरण, मिट्टी, और सिंचाई के साधनों का मध्यनजर किया है ताकि गेहूं की कुछ उन्नत किस्में तैयार की जा सकें। इस लेख में, हम आपको इन उन्नत किस्मों के बारे में विस्तार से बताएंगे। किसान भाइयों को सुझाव दिया जाता है कि वे प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करें।
आपकी जानकारी को साफ और विस्तार से प्रस्तुत करने के लिए यहां एक टेबल में डेटा दिया जा रहा है, जिसमें गेहूं की उन्नत और विकसित किस्मों की विशेषताएं दी गई हैं:
किस्म | वर्ष | उत्पादकता (क्विंटल/हेक्टेयर) | पकने की अवधि (दिन) | पौधों की ऊँचाई (सेमी) | विशेष अवरोध (रोगों के खिलाफ) |
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देवा(के.-9107) | 1996 | 45-50 | 130-135 | 105-110 | रतुआ, झुलसा, करनाल बंट |
के.-0307 | 2007 | 55-60 | 125-100 | 85-95 | रतुआ, झुलसा, करनाल बंट |
एच.पी.-1731(राजलक्ष्मी) | 1995 | 55-60 | 130-140 | 85-96 | रतुआ, झुलसा, करनाल बंट |
नरेन्द्र गेहूँ –1012 | 1998 | 50-55 | 135-140 | 85-95 | रतुआ, झुलसा, करनाल बंट |
उजियार (के.-9006) | 1998 | 50-55 | 130-135 | 105-110 | रतुआ, झुलसा, करनाल बंट |
पूसा व्हीट 3237 (एच.डी.3237) | 2019 | 48.4 | 145 | 105-110 | पीला, भूरा रस्ट, अच्छी |
एच.यू.डब्लू.-468 | 1999 | 55-60 | 130-140 | 85-95 | — |
डी.एल.-784–3 (वैशाली) | 1993 | 45-50 | 130-135 | 85-90 | — |
यू.पी.-2382 | 1999 | 60-65 | 135-140 | 95-100 | — |
एच.पी.-1761 | 1997 | 45-50 | 135-140 | 90-95 | — |
डी.बी.डब्लू.-17 | 2007 | 60-65 | 125-135 | 95-100 | रतुआ, अवरोधी |
एच.यू.डब्लू.-510 | 1998 | 50-55 | 115-120 | 95-100 | — |
पी.बी.डब्लू.-443 | 2000 | 50-55 | 125-135 | 90-95 | रतुआ, अवरोधी |
पी.बी.डब्लू.-343 | 1997 | 60-65 | 125-140 | 90-95 | — |
एच.डी.-2824 | 2003 | 55-60 | 125-135 | 90-100 | रतुआ, अवरोधी |
सी.बी.डब्लू.-38 | 2009 | 44.4 | 112-129 | 80-105 | ताप सहिष्णु, चपाती, ब्रेड |
के.-1006 | 2015 | 47.0 | 120-125 | 88-90 | रतुआ, झुलसा, अवरोधी |
के.-607 (ममता) | 2014 | 42.4 | 120-125 | 85-88 | रतुआ, झुलसा, अवरोधी |
डी.बी.डब्लू.-187 (करन वन्दना) | 2019 | 48.8 | 120 | 85-88 | पीला, भूरा रस्ट, अच्छी |
पूसा यशस्वी (एच.डी.-3226) | 2019 | 57.5 | 142 | 85-88 | स्ट्रिप, लीफ एवं करनाल बंट तथा ब्लेक रस्ट, पाउडरी मिल्ड्यू, फ्लेग स्मट एवं फुटराट ले प्रति उच्च अवरोधी |
के.आर.एल.283 | 2018 | 20.9 | 128-133 | 85-88 | लीफ ब्लाइट, करनाल बंट एवं हिल बंट के प्रति अवरोधी |
एच.आई.8759 (पूसा तेजस) | 2017 | 56.9 | 117 | 85-88 | उच्च प्रोटीन, जिंक एवं आयरन, पास्ता बनाने वाली प्रजाति (बायो- फोर्टीफाईड प्रजाति- प्रोटीन 12.5 प्रतिशत, आयरन 41.1 पीपीएम, जिंक 42.8 पीपीएम) |
एच.डी.3171 | 2017 | 28 | 130-140 | 85-88 | काला, पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी, उच्च जिंक एवं आयरन (बायो- फोर्टीफाइड प्रजाति-जिंक 47.1 पीपीएम) |
पी.बी.डब्लू.-660 | 2016 | 35.3 | 134-172 | 85-88 | पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी, अच्छी चपाती वाली |
आर.ए.आई.-4238 | 2016 | 45.5 | 114 | 85-88 | अच्छी चपाती वाली |
यू.पी.-2784 | 2016 | 44.2 | 120-130 | 85-88 | पीला, भूरा रस्ट अवरोधी तथा लीफ ब्लाइट मध्यम अवरोधी |
एच.आई.8737 (पूसा अनमोल) | 2015 | 53.4 | 125 | 85-88 | काला एवं भूरा रस्ट तथा करनाल बंट अवरोधी |
डी.बी.डब्लू.107 | 2015 | 41.3 | 94-130 | 85-88 | भूरा रस्ट अवरोधी तथा ताप सहिष्णु |
एन.डब्लू.5054 | 2014 | 47.0 | 130 | 85-88 | भूरा रस |
सिंचित दशा – गेहूं की विकसित किस्में :-
किस्म | वर्ष | उत्पादकता (क्विंटल/हेक्टेयर) | पकने की अवधि (दिन) | पौधों की ऊँचाई (सेमी) | विशेषताएं |
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डी.बी.डब्लू.-14 | 2002 | 40-45 | 108-128 | 70-95 | |
एच.यू.डब्लू.-234 | 1988 | 35-45 | 110-120 | 85-90 | |
एच.आई.-1563 | 2011 | 37.6 | 110-115 | 85-90 | लीफ रस्ट एवं लीफ ब्लाइट अवरोधी, चपाती, ब्रेड एवं बिस्किट योग्य प्रजाति, आयरन जिंक एवं कांपर की अधिकता |
सोनाली एच.पी.-1633 | 1992 | 35-40 | 115-120 | 115-120 | |
एच.डी.-2643 (गंगा) | 1997 | 35-45 | 120-130 | 85-95 | |
के.-9162 | 2005 | 40-45 | 110-115 | 90-95 | |
के.-9533 | 2005 | 40-45 | 105-110 | 85-90 | |
एच.पी.-1744 | 1997 | 35-45 | 120-130 | 85-95 | |
नरेन्द्र गेहूँ – 1014 | 1998 | 35-45 | 110-115 | 85-100 | रतुआ एवं झुलसा अवरोधी |
के.9423 | 2005 | 35-45 | 85-100 | 85-90 | |
के.-7903 | 2001 | 30-40 | 85-100 | 85-90 | |
नरेन्द्र गेहूँ – 2036 | 2002 | 40-45 | 110-115 | 80-85 | रतुआ झुलसा अवरोधी |
यू.पी.-2425 | 1999 | 40-45 | 120-125 | 90-95 | |
एच.डब्लू.-2045 | 2002 | 40-45 | 115-120 | 95-100 | रतुआ झुलसा अवरोधी |
नरेन्द्र गेहूँ – 1076 | 2002 | 40-45 | 110-115 | 80-90 | रतुआ झुलसा अवरोधी |
पी.बी.डब्लू.-373 | 1997 | 35-45 | 120-135 | 85-90 | |
डी.बी.डब्लू.-16 | 2006 | 40-45 | 120-125 | 85-90 | |
ए.ए.आई.डब्लू.-06 | 2014 | 35-45 | 110-115 | 105-110 | लीफ रस्ट अवरोधी |
एच.डी.-3059 (पूसा पछेती) | 2013 | 39.5 | 157 | 93 | रस्ट अवरोधी, ताप सहिष्णु, उच्च प्रोटीन तथा ब्रेड, बिस्किट, चपाती योग्य |
एच.डी.-2985 (पूसा बंसत) | 2011 | 35-45 | 105-110 | पार्टीकल टाइप रोग अवरोधी | |
पी.बी.डब्लू.-71 | 2013 | 40-45 | 100-110 | टाप अवरोधी | |
पी.बी.डब्लू.-752 | 2019 | 49.7 | 120 | पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी (बायो-फोर्टीफाईड प्रजाति-प्रोटीन 12.4%) | |
पी.बी.डब्लू.-757 | 2019 | 36.7 | 104 | पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी (बायो-फोर्टीफाई |
गेहूँ की खेती के लिए जलवायु (Climate for Wheat Cultivation):
गेहूँ की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु महत्वपूर्ण है। इसके लिए समशीतोषण जलवायु की आवश्यकता होती है। गेहूँ की खेती के लिए सामान्यत: बुवाई के समय, तापमान को 20 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच में रखना उपयुक्त माना जाता है। यह तापमान बुवाई के समय पौधों के उद्गमन और विकास के लिए सबसे अनुकूल होता है। गर्मी और ठंडी का सही खिलाड़ी समय समशीतोषण की उन्नत खेती के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
गेहूँ की खेती के लिए मिट्टी (Soil for Wheat Cultivation):
गेहूँ की खेती के लिए मिट्टी का चयन महत्वपूर्ण है। चाहे आपकी भूमि बलुई दोमट, भारी दोमट, मटियार, मार, या कावर जैसी हो, गेहूँ की खेती के लिए उचित तैयारी की जा सकती है। यहां यह महत्वपूर्ण है कि आपकी खेत की मिट्टी में उपयुक्त पोषण तत्व और पानी की उचित उपलब्धता हो।
इसके लिए बेहतर है कि आप स्थानीय कृषि अनुसंधान केंद्रों और विश्वविद्यालयों के मार्गदर्शन का सहारा लें जो आपके क्षेत्र के लिए सबसे अच्छा हो। ये संसाधन आपके क्षेत्र के भूमि, जलवायु, और मौसम की विशेषज्ञीयता के हिसाब से तैयार किए जा सकते हैं।
उचित मिट्टी की तैयारी विशेष ध्यान की आवश्यकता है, क्योंकि इससे पौधों के स्वस्थ विकास और फसल की उच्च उपज होती है। सही मिट्टी की तैयारी में जल संचार, फसल की पोषण की तैयारी, और मिट्टी की खाद की उपयोगिता का महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इसलिए, आपके क्षेत्र की विशेषताओं और स्थानीय विचारों के आधार पर उपयुक्त मिट्टी की तैयारी और उपयुक्त सिंचाई की योजना बनाने में सहायक तथा आवश्यक हो सकता है।
गेहूं की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land Preparation for Wheat Cultivation)
पहले, पिछली फसल की कटाई के बाद, खेत की अच्छे तरीके से तैयारी करनी चाहिए। ट्रैक्टर की मदद से खेत को अच्छे से जोतना होगा। खेत को ट्रैक्टर के साथ तवियां जोड़कर जोता जाता है। इसके बाद, खेत को दो या तीन बार हल से जोतना चाहिए। खेत की जोताई को शाम के समय करना बेहद उपयुक्त होता है, और रोपाई की गई जमीन को पूरी रात खुला छोड़ देना चाहिए, ताकि वह ओस की बूँदों से नमी सोख सके।
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गेहूँ की खेती के लिए बीज का चुनाव (Selection of Seeds):
बीज की मात्रा (Amount of Seed)
बीज का चुनाव खेती के लिए महत्वपूर्ण है। मशीन से बुवाई करने पर, हर हेक्टेयर के लिए 100 किलोग्राम तथा मोटे बीज के लिए 125 किलोग्राम की मात्रा में बीज का प्रयोग करना चाहिए। अगर खेत में बीज की अंकुरण क्षमता कम है, तो सामान्य बीज के लिए 125 किलोग्राम और मोटे बीज के लिए 150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा में उपयोग करें।
बीज की मर्तब (Seed Testing):
बुवाई से पहले, बीज की मर्तब या अंकुरण क्षमता की जाँच आवश्यक है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि बीज पूर्णरूप से अंकुरित होगा, स्थानीय गवर्नमेंट रिसर्च सेंटर्स में इस सुविधा का मुफ्त उपयोग करें। अगर आप पुराने बीज का उपयोग कर रहे हैं, तो उनकी अंकुरण क्षमता को जाँचना बहुत महत्वपूर्ण है, ताकि बाद में कोई समस्या नहीं हो।
गेहूं की बिजाई (Wheat Sowing)
बिजाई का समय (Timing of Sowing):
गेहूं की बिजाई को सही समय पर करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका असर पैदावार पर पड़ता है। गेहूं की बिजाई का समय आमतौर पर 25 अक्तूबर से नवंबर के पहले सप्ताह के बीच होता है। पिछेती बीजों से बिजाई की जाने वाली फसल में बीजों की विधि के अनुसार, कतारों के बीच 15-18 सेंटीमीटर का अंतर होना आवश्यक होता है।
बीज की गहराई (Seed Depth):
बीज की गहराई 4-5 सेंटीमीटर होनी चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि बीज सही गहराई पर बोया जाता है, जिससे पौधों को सही निर्धारित गहराई पर उगने में मदद मिलती है।
बिजाई की विधियाँ (Methods of Sowing):
- बिजाई वाली मशीन (Seed Drill): यह मशीन बीज को एक निश्चित गहराई और कतारों में बोने के लिए उपयोग की जाती है। इससे बीज का प्राणी संख्या और बीजों का सही दूरी पर बोआ जा सकता है।
- छींटा देने की विधि (Dibbling Method): इस विधि में, बीज को हाथ से बोया जाता है, जो अधिकांश छोटे खेतों में किया जाता है। इसमें खेत की छोटी छोटी खोदाई की जाती है और फिर बीज डाला जाता है।
- जीरो टिलेज ड्रिल (Zero Tillage Drill): इस ड्रिल से बीज को बिना जुताई किए बोना जाता है, जिससे खेत की जमाव और बीज की बचत होती है।
- रोटावेटर (Rotavator): इस मशीन का उपयोग खेत की तैयारी के बाद बीज की बोने के लिए किया जाता है, जिससे जमाव और बीज की गहराई को बनाए रखने में मदद मिलती है।
बीज उपचार (Seed Treatment):
- Izumil और Izumonas 10 मिलीलीटर को एक किलोग्राम पानी में मिलाकर बुआई से 3 दिन पहले या बाद में प्रति एकड़ में छिड़काव करना उचित हो सकता है, जिससे बुआई के समय नदीनों की रोकथाम हो सकती है।
गेहूं की खेती उर्वरक (Wheat Cultivation Fertilizers)
खाद (Fertilizers):
- खादें (किलोग्राम प्रति एकड़):
- UREA: 110
- DAP or SSP: 55
- MOP: 155
- ZINC: 20
गेहूं की सिंचाई का समय और मात्रा (Timing and Quantity of Wheat Irrigation)
हमारे देश में गेहूं की कम पैदावार के पीछे कई कारण हैं, जिनमें से प्रमुख कारण सिंचाई के सही समय पर न होना है। अधिक फसल प्राप्त करने के लिए हमें सिंचाई समय पर करनी चाहिए, और खाद आदि का उपयोग भी समय पर करना चाहिए।
पौधों की वृद्धि और विकास के लिए सही मात्रा में पानी बहुत महत्वपूर्ण है। पानी भूमि में पोषक तत्वों को मिलाता है, जिससे जो हम खाद आदि डालते हैं, वह पानी की मदद से पौधों को पहुंचता है।
गेहूं की फसल में सिंचाई की मात्रा बरसात की मात्रा पर निर्भर करती है। अगर बरसात नहीं होती है, तो लगभग 4 से 6 सिंचाइयाँ बहुत आवश्यक हो सकती हैं। अगर आपकी भूमि अधिक रेतीली नहीं है, तो आपको लगभग 6 से 8 सिंचाइयाँ करनी हो सकती हैं। अगर समय पर बरसात नहीं होती है, तो लगभग 15 दिन के बाद सिंचाई करनी होगी।
पहला पानी जब लगाना होता है, तो यह कब होना चाहिए? जब गेहूं के पौधे 5 या 6 इंच लम्बे हो जाते हैं, तब पहला पानी लगाना चाहिए, या फिर आपको समय-समय पर जल की मात्रा की जाँच करनी चाहिए। अगर भूमि में नमी कम है, तो पानी लगा देना चाहिए, लेकिन पहले पानी को हल्की मात्रा में ही लगाना चाहिए। पहला पानी आमतौर पर 20 से 25 दिन के बाद लगाया जाता है। अगर आपकी भूमि रेतीली है, तो आपको लगभग 15 से 20 दिन के अंदर पानी लगाना चाहिए।
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गेहूं के रोग (Disease of Wheat)
नाम | जानकारी | दवा | दवा की मात्रा |
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पत्ती जंग (लीफ रस्ट/ब्राउन रस्ट) | पत्तियों पर भूरे या भूरे रंग के दाग होते हैं। यह फसल की पत्तियों पर प्रभाव डालता है। | Izumil and Izumonas | 3ml/L |
डंडा जंग (स्टेम रस्ट) | गेहूं की डंडियों पर दाग होते हैं, जिससे फसल की डंडियों पर क्षति होती है। | Izumil and Izumonas | 3ml/L |
पीली जंग (स्ट्राइप रस्ट/येलो रस्ट) | पत्तियों पर पीला या पीले रंग के दाग होते हैं, जो गेहूं को प्रभावित करते हैं। | Izumil and Izumonas | 3ml/L |
ढीला स्मट (लूस स्मट) | इस रोग में गेहूं की बुआई के समय अच्छे फसलों की बजाय बुआई की बुआई करता है, जिससे फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। | Izumil and Izumonas | 3ml/L |
पाउडरी मिल्ड्यू (पाउडरी मिल्ड्यू) | इस रोग में गेहूं की पत्तियों पर सफेद परतों के छिद्र बनते हैं, जो फसल की उपज को कम करते हैं। | Izumil and Izumonas | 3ml/L |
गेहूं की फसल के लिए खरीदें ये जैव उर्वरक (Buy These Bio Fertilizers for Wheat Crop)
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Izumil (Bio Fungicides and Bactericides)
₹425.00 – ₹1,550.00
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Izumonas (Bio Fungicides and Bactericides)
₹160.00 – ₹550.00