आपका स्वागत है! हम आपको मूंगफली की खेती के बारे में विस्तारपूर्ण जानकारी देंगे, ताकि आप इसे अपने खेत में उगा सकें।

मूंगफली भारत में महत्वपूर्ण फसल है, जिसकी खेती देश के तकरीबन सभी राज्यों में की जाती है। लेकिन इसकी फसल उत्तराखंड और दिल्ली जैसे राज्यों में बेहतर फलती है, क्योंकि वहां की जलवायु मूंगफली के लिए अधिक अनुकूल होती है।

आजकल किसान नकदी फसलों की खेती कर रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई के इस युग में किसानों को मूंगफली जैसी फसलों की खेती पर ध्यान देना चाहिए।

यदि आप अपने खेत में मूंगफली की फसल उगाना चाहते हैं, तो सबसे पहले यह जान लें कि आपके इलाके की जलवायु मूंगफली की फसल के लिए अनुकूल है या नहीं। यह जानकारी आपके पौधों के स्वस्थ उगाने में मदद करेगी।

इसलिए, मूंगफली की खेती को समझने के लिए इसकी उन्नत किस्म का चयन करने से लेकर फसल की बुआई के आधुनिक तरीकों और अन्य विधियों की जानकारी की जरूरत है।

आपकी खेती की सफलता के लिए यह सही जानकारी और समझदारी का सवाल है, और हम इसमें आपकी मदद करेंगे।

मूंगफली की खेती कैसे करें : बुवाई से लेकर कटाई तक

मूंगफली की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Groundnut)

मूंगफली के कई उन्नत किस्में हैं, यहां कुछ किस्मों का वर्णन है:

  1. एच.एन.जी.10: यह किस्म 120 से 130 दिनों के बाद पूरी तरह से तैयार होती है और प्रति हेक्टेयर पर 20 से 25 क्विंटल उत्पादन करती है। इसमें 51 प्रतिशत तेल होता है और दाने भूरे रंग के होते हैं।
  2. आर.जी.425: इस किस्म की बुवाई करने में 120 से 125 दिन लगते हैं और प्रति हेक्टेयर पर 28 से 36 क्विंटल उत्पादन होता है। इसके दाने हल्की गुलाबी रंग के होते हैं।
  3. एच.एन.जी.69: इससे प्रति हेक्टेयर 25 क्विंटल तक उत्पादन किया जा सकता है, और इसमें पौधों की कई बीमारियों के प्रति प्रतिरोध होता है।
  4. आर.जी.382: इस किस्म की बुवाई के लिए 120 दिन की आवश्यकता होती है और प्रति हेक्टेयर पर 20 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है।
  5. गिरनार 2: इससे प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल तक उत्पादन किया जा सकता है, और इसके दाने मोटे होते हैं।
  6. गंगापुरी: यह किस्म खेती के लिए अधिक उत्तर प्रदेश में उपयोगी है और प्रति एकड़ जमीन से 8 से 9 क्विंटल उत्पादन कर सकती है।
  7. प्रकाश (सी.एस.एम.जी. 884): इस किस्म की खेती उत्तर प्रदेश में प्रमुखता से की जाती है और प्रति एकड़ जमीन से लगभग 8 क्विंटल उत्पादन होता है।
  8. अंबर: यह खेती के लिए उत्तर भारत में उपयुक्त है और प्रति एकड़ से 10 से 12 क्विंटल उत्पादन हो सकता है।
  9. नंबर 13: इस किस्म की खेती रेतीली भूमि में की जा सकती है और प्रति एकड़ से 12 क्विंटल पैदावार हो सकती है।
  10. आर जी 382: खरीफ मौसम में खेती के लिए यह किस्म है, और प्रति एकड़ पर 7 से 9 क्विंटल उत्पादन हो सकता है।
  11. राज दुर्गा: इस किस्म की खेती सिंचित और असिंचित भूमि में की जा सकती है और प्रति एकड़ से 6.8 से 13.2 क्विंटल पैदावार हो सकती है।
  12. टी जी 37 ए: इस किस्म की फलियों में 51 प्रतिशत तेल होता है, और प्रति एकड़ पर 12 से 14 क्विंटल उत्पादन हो सकता है।
  13. दिव्या: इस किस्म की खेती उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में की जाती है और प्रति एकड़ से 10 क्विंटल पैदावार हो सकती है।

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मूंगफली की खेती के लिए सही जलवायु (Right Climate for Groundnut Cultivation)

मूंगफली की खेती करने के लिए सही जलवायु का चयन करना बेहद महत्वपूर्ण है। आपकी जमीन की जलवायु मूंगफली की फसल के लिए उपयुक्त होनी चाहिए।

मूंगफली भारत में महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जिसकी खेती लगभग सभी राज्यों में की जाती है। जहां सूर्य की अधिक रोशनी और उच्च तापमान होता है, वहां मूंगफली की फसल बेहतर फलती है।

मूंगफली की खेती के लिए, आवश्यक है कि तापमान कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस हो, और खरीफ सीजन के दूसरे पखवाड़े में बुआई की जाए।

इस रूप में, मूंगफली की खेती के लिए सही जलवायु की जांच करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि आपकी खेती सफल हो सके।

मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी (Suitable Soil for Groundnut Cultivation)

मूंगफली की अच्छी फसल पाने के लिए एक विशेष प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता होती है। यह मिट्टी हल्की पीली दोमट की होनी चाहिए।

मूंगफली की खेती के लिए, भूमि का सही प्रकार होना चाहिए। इसके लिए जल निकासी वाली भूमि उपयुक्त होती है। जलभराव और कठोर चिकनी मिट्टी में मूंगफली की खेती नहीं की जानी चाहिए।

मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त मान माना जाता है, जो 6 से 7 P.H. के बीच हो।

इस प्रकार, सही प्रकार की मिट्टी का चयन करना मूंगफली की खेती में महत्वपूर्ण होता है।

मूंगफली की खेती के लिए भूमि और उसकी तैयारी (Land and Its Preparation for Peanut Cultivation)

मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त भूमि और उसकी तैयारी के बारे में विस्तार से जानकारी दें।

उपयुक्त भूमि का चयन (Selection of Suitable Land)

  • अच्छे जल निकास वाली भूमि, मूंगफली की खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।
  • भूरभुरी दोमट और बलुई दोमट भूमि इसके लिए बेहद उपयुक्त होती है।

भूमि की तैयारी (Land Preparation)

  1. मिट्टी पलटने वाले हल से शुरू करें और बाद में कल्टीवेटर का उपयोग करके दो बार जुताई करें।
  2. खेत को समतल करने के लिए खेत को पाटा लगाकर तैयार करें।

मूंगफली की खेती के लिए बीजों का चयन (Selection of Seeds for Groundnut Cultivation)

मूंगफली की खेती के लिए बीजों का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यहां उसके चयन के बारे में स्पष्ट और विस्तार से जानकारी दी गई है।

बीज की मात्रा (Amount of Seed)

  • कम फैलने वाली किस्मों के लिए, हर हेक्टर पर 75-80 ग्राम बीज की मात्रा उपयोग में लेनी चाहिए, और फैलने वाली किस्मों के लिए, 60-70 ग्राम प्रति हेक्टर का उपयोग करना चाहिए।

चयन के लिए बीज (Selection of Seeds)

  • बुवाई के लिए स्वस्थ फलियों का चयन करना बेहद महत्वपूर्ण है, या फिर विश्वसनीय प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करना चाहिए।
  • बीज बोनने से 10-15 दिन पहले फलियों को अलग कर लेना चाहिए।

बीजाई (Seeding)

बीजाई का समय (Time of Seeding)

मूंगफली की बीजाई अक्सर मार्च से अप्रैल के महीनों में की जा सकती है, ताकि पौधों की अच्छी बढ़त हो सके। बीज को लाइनों में बोए जाना चाहिए, जहां प्रति लाइन की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर हो और पौधों की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। ज्यादातर फसलों में 95-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा होती है। मूंगफली की बुवाई आमतौर पर मानसून की शुरुआत के साथ ही होती है, खासकर उत्तर भारत में यह समय आमतौर पर 15 जून से 15 जुलाई के बीच होता है।

बीज की गहराई (Seed Depth in Soil)

बीज की गहराई को 3 से 5 सेंटीमीटर तक रखना चाहिए।

बीजाई का विधि (Method of Seeding)

इसकी बीजाई को रेजड बेड-बेड पद्धति से करना लाभप्रद साबित हो सकता है। इस पद्धति में, मूंगफली की बुवाई के लिए लाइनों की जगह पंक्तियाँ तैयार की जाती हैं, जिनमें प्रत्येक पंक्ति के बाद एक पंक्ति खाली छोड़ दी जाती है। इससे भूमि में नमीं का संचय, जलनिकास, खरपतवारों का नियंत्रण, और फसल की देखभाल सही तरीके से हो सकती है।

गुच्छेदार किस्म के लिए पंक्तियों के बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। जबकि फैलाव और अर्धफैलाव किस्मों के लिए पंक्तियों के बीच की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधों के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन (Manure and Fertilizer Management)

मूँगफली की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए उर्वरकों का सही प्रबंधन क्रियाशील है। खेती की अग्रिम तैयारी में सही खादों का उपयोग बहुत महत्वपूर्ण है।

बुवाई के पूर्व गोबर की खाद (Cow Dung Fertilizer Before Sowing)

यदि आप ग्रीष्मकालीन मूँगफली की खेती कर रहे हैं, तो बुवाई से पहले 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद डालनी चाहिए। इससे भूमि की पोषण गुणवत्ता में सुधार होगा। यदि आप आलू या सब्जी मटर की खेती के बाद मूँगफली उगा रहे हैं, तो गोबर की खाद की आवश्यकता नहीं है।

उर्वरकों का प्रबंधन मूँगफली में (Management of Fertilizers in Groundnut)

ग्रीष्मकालीन मूँगफली के लिए, खेती के दौरान प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉस्फेट, 45 किलोग्राम पोटाश, और 300 किलोग्राम जिप्सम का प्रयोग करना चाहिए। आलू और सब्जी मटर के खेतों में, 15 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फॉस्फेट, 45 किलोग्राम पोटाश, और 300 किलोग्राम जिप्सम का उपयोग उचित होगा।

टापड़े सिंग और बोरेक्स का प्रयोग (Use of Tapde Singh and Borax)

जिप्सम और नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा को फूलने और खुरपी की मदद से बुवाई के समय बीज से लगभग 2-3 सेंटीमीटर गहराई में डालना चाहिए। इसके बाद, खुरपी की मदद से खेत में मिलाना आवश्य करें |

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सिंचाई (Irrigation)

मूंगफली खरीफ फसल होती है, इसलिए इसमें आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। सिंचाई की आवश्यकता मुख्य रूप से मौसम और वर्षा के वितरण पर निर्भर करती है।

फसल की बुवाई को तेजी से करने की आवश्यकता होने पर, एक पलेवा के रूप में सिंचाई करना आवश्यक होता है। यदि पौधों में फूल आते समय मौसम अत्यंत सूखा होता है, तो उस समय सिंचाई करना जरुरी हो सकता है।

फलियों के विकास और गिरने के समय, भूमि में पर्याप्त मात्रा में नमी की आवश्यकता होती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि फलियाँ बड़ी और सुन्दर हों, वर्षा की मात्रा के अनुसार सिंचाई की आवश्यकता हो सकती है।

मूंगफली की फसल की फलियाँ जमीन के अंदर विकसित होती हैं, इसलिए खेत में बहुत दिनों तक पानी भरे रहने पर फलियों के विकास और उपज पर बुरा असर पड़ सकता है। इसलिए खेत को समतल बनाने के लिए खुदाई करने पर सहायक होता है |

मूंगफली के प्रमुख कीट (Major Pests of Groundnut)

नामजानकारीदवादवा की मात्रा
दीमकयह बहुभक्षी कीट है, खेतों में पौधे छोटे होते हैं तो यह इनकी जड़ों को काट देती हैं जिससे पौधे सूख जाते हैं। दीमक इनकी जड़ों को काट देती हैं जिससे पौधे सूख जाते हैं। दीमक मूंगफली के पौधों के तने एवं फलियों को भी नुकसान पहुँचाती हैं जिन पौधों पर दीमक का आक्रमण होता है उन पर कवक व जीवाणु जन्य रोग भी फ़ैल जाते हैं। सफेद लट: इसका वयस्क कीट गहरे भूरे रंग का 2.5 – 5.0 मि. मि. चौड़ा तथा 10 – 15 मि. मि. लंबा होता है। मादा कीट आकार में नर की अपेक्षा बड़ी होती है। पूर्ण विकसित लट (ग्रब) अक्षर के आकार की मटमैली सफेद होती है। इसके लट (ग्रब) भूमि में जड़ अत्यधिक हानि पहुँचाते हैं जिसके फलस्वरूप पौधे सूख जाते हैं।Izumi Guard2 Litres
हैलिकोवरपायह एक बहुभक्षी कीट है। इसका व्यस्क गहरे भूरे रंग का होता है। जिसके अगले पंख पर वृक्क के आकर का धब्बापाया जाता है एवं उस पर मटमैली कतारें देखी जा सकती हैं। इसके पिछले पंख तुलनात्मक रूप से सफेद रंग के होते हैं इसकी लार्वा/सुंडी लंबी एवं भूरे रंग की होती है जिसके शरीर पर गहरे रंग भूरे रंग एवं पीले रंग की धारियां पायी जाती हैं। इसकी सूंडियां पत्तियों को खाकर नुकसान पहुँचाती हैं।Izumi Guard2 Litres
पत्ती भक्षक कीटयह बहुभक्षी कीड़ा हैं इसके वयस्क पंतगों के अगले पंख सुनहरे, भूरे रंग के सफ़ेद धारीदार होते हैं। सूंडियाँ मटमैले हरे रंग की होती हैं जिनके शरीर पर पीले, हरे व नारंगी रंगों की लंबवत धारियां होती हैं। उदर पर प्रत्येक खंड के दोनों ओर कIzumi Guard2 Litres

मूंगफली के प्रमुख रोग (Major Diseases of Groundnut)

नामजानकारीदवादवा की मात्रा
रोगअगेती पर्ण चित्तीइस रोग के धब्बे पौधे उगने के 10 से 18 दिनों के बाद पत्ती की उपरी सतह पर प्रकट होते हैं। इस रोग के धब्बे 1 से 10 मि. मी. के गोलाकार या अनियमित आकार के हल्के पीले रंग के होते हैं बाद में यह धब्बे लाल – भूरे या काले रंग के होते हैं। इन धब्बों की निचली सतह नारंगी रंग की होती है।Izumil And Izumonas3ml – Izumil
5ml – Izumonas
पछेती पर्ण चित्तीयह रोग पौधे उगने के 28 से 35 दिनों के बाद पत्ती की निचली सतह पर प्रकट होता है। इस रोग के वृत्तकार धब्बों का आकार 1.5 से 5 मि. मी. का होता है। इस रोग के धब्बों का रंग पहले पीले रंग का होता है बाद में यह धब्बे पत्तियों के दोनों सतहों पर काले रंग के हो जाते हैं। निचली सतह पर यह धब्बे कार्बन की तरह काले नजर आते हैं।Izumil And
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स्तंभमूलसंधि विगलन रोगयह मूंगफली का बीज जनित रोग है जो प्रभावित पौधों को शतप्रतिशत हानि पहुँचाता हैं। रोग के लक्षण पौधों के उस भाग पर प्रकट होते हैं जो मिट्टी की सतह से लगा होता है। मिट्टी की सतह का तने का भाग (कालर भाग) रोग जनक फूंद से ग्रसित हो जाता हैं। यह रोग पौधों के आधार को कमजोर कर देती है। जिससे पौधे गिर जाते हैं एवं सूखकर मुरझा जाते हैं। इन प्रभावित पौधों के सूखी सड़न वाले स्थान पर रोगजनक फफूंद की उभरी हुई काली – काली रचनाएँ स्पष्ट दिखाई देती है।Izumil And
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शुष्क जड़ विगलन रोगरोग के शुरू के लक्षण तने के भूमि की सतह के एक दम ऊपरी हिस्से पर पानी से भींगी विक्षति जैसे धब्बों के रूप में प्रकट होते है। ये धब्बे धीरे – धीरे बढ़कर गहरे रंग के हो जाते है। ये विक्षति धीरे – धीरे गहरी होकर पूरे तने को लपेट लेती है। प्रभावित तने का ग्रसित भाग कालिख जैसा हो जाता है व उसमें स्कलेरोशिया बन जाते है व तने की ऊपरी पर्त छोटे – छोटे टुकड़ों में फट जाती हैं। अत्यल्प गोल धारी वाले अनियमित आकार के धब्बे पत्तियों पर भी बन जाते है जो बढ़कर बड़े लहरदार धब्बों में बदल जाते हैं।Izumil And
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अल्टरनेरिया पर्ण दागइस रोग के हरिमाहीन एवं पनीले धब्बे पत्ती की ऊपरी की सतह पर हो जाते हैं। इस रोग के धब्बे घूसर रंग के अनियमित आकार के एवं पीलापन लिए सुराख वाले होते है। पत्ती के शिखाग्र के भाग पर हल्के से गहरे घूसर रंग की अंगमारी हो जाती है। अंगमारी से प्रभावित पत्ती कुरकूरी होकर अंदर की ओर मुड़ जाती है। धब्बों के पास की लघूशिरा व शिरा ऊतकक्षयी हो जाती हैं।Izumil And Izumonas3ml – Izumil
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तना विगलनतने पर रोग का संक्रमण मिट्टी की सतह के पास या तने के सबसे निचले हिस्से पर होता है। इस रोग के लक्षण सूखे मौसम में मिट्टी की सतह के नीचे एवं गीले मौसम में मिट्टी की सतह के नीचे एवं गीले मौसम में मिट्टी की सतह के ऊपर तने पर पाए जाते है। शुरू में मिट्टी की सतह के पास तने पर गहरी घूसर इ=विक्षति प्रकट होटी है फिर यह विक्षति सफ़ेद कवक जाल से तने के प्रभावित भाग को ढक लेती है। रोग बढ़ने दे साथ संक्रमित भाग में सरसों के बीज के आकार एवं रंग के स्कलेरोशिया दिखाई देने लगते हैं। स्पष्ट सड़न नीचे की ओर प्रकट होती है एवं पौधे के हरे भाग पीलापन एवं घूसर रंग के होकर मुरझा जाते हैं। रोग के संक्रमण से एक या दो शाखाएं या फिर पौधा मर जाता है।Izumil And
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मूंगफली कली परिगलन रोगरोग के प्रारंभिक लक्षण नयी पत्तियों पर क्लोरोटिक धब्बों के रूप में प्रकट होते हैं एवं फिर क्लोरोटिक परिगालित छल्लों के रूप में विकसित हो जाते हैं फसल पर टर्मिनल कलिका का परिगलन हो जाना इस रोग का विशेष लक्षण है। सहायक प्ररोह की वृद्धि रूकना, पर्णकोण की कुरूपता एवं पत्तियों का परिगलन हो जाना इस रोग की मुख्य पहचान है। अगर पौधे पर रोग का संक्रमण शुरू की अवस्था में हो जाता है तो पौधें की वृद्धि रूक कर पौधा झाड़ी जैसा रह जाता हैं। यदि रोग का संक्रमण पौधे पर एक माह बाद होता है तो पौधें की कुछ शाखाएं एवं शीर्षस्थ भाग ही प्रभावित होता है।Izumil And
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मूंगफली तना परिगलन रोगयह रोग भी मूंगफली की फसल में काफी नुकसान पहुँचाता हैं।Izumil And
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किट्ट रोगरोग के लक्षण नारंगी लालिमा युक्त भूरे रंग के यूरिडो स्पॉट के रूप में पत्ती की ऊपरी सतह एवं पौधे के अन्य वायव भागों पर भी दिखायी दाने लागतें हैं, ये यूरिडो स्पॉट अलग – अलग या फिर समूह में होते हैं। स्पॉट पत्ती की उप – वाह्य त्वचा पर सधन रंध्रों पर बनते हैं। तथा अधिवृशन के माध्यम से फटकर एवं उजागर हो जाते हैं। परिणामस्वरुप लाल भूरे बीजाणुओं के समूह पत्ती की ऊपर की सतह पर दिखायी देने शुरू हो जाते हैं। संक्रमण बढ़ने पर स्पॉट गहरे भूरे रंग के होकर आपस मिलकर पत्ती पर फ़ैल जाते हैं। अंत में पत्तियां मुड़कर गिर जाती हैं एवं विपत्रण हो जाता हैं संक्रमित पौधे में फलियाँ कम बनती हैं एवं दाने भी छोटे रह जाते हैं।Izumil And
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